शुक्रवार, 28 मई 2021

शब्द संज्ञान




डॉ. योगेन्द्र नाथ मिश्र

 1. गिरीश / गिरिश

गिरीश तथा गिरिश दोनों संस्कृत के शब्द हैं। दोनों सही हैं। गिरीश हिंदी में चलता है,जिसका अर्थ है हिमालय तथा शंकर।

लेकिन गिरिश हिंदी में नहीं चलता। यह अलग बात है कि अज्ञान के कारण कोई गिरीश की जगह गिरिश लिख दे।

1. गिरीश में दीर्घ संधि है - गिरि+ईश।

2. गिरिश में समास है - गिरौ शेते इति गिरिश।

यह शिव का विशेषण है। इसका प्रयोग रघुवंश में कालिदास ने किया है।

यह जानकारी मुझे मेरे गुरु रीतिकाल के आचार्य पं. विश्वनाथप्रसाद मिश्र ने सन् 1977में दी थी।

उनके पौत्र श्री गिरिशचंद्र मिश्र के विवाह का निमंत्रण पत्र काशी विद्यापीठ और बीएचयू के अध्यापकों सहित अन्य कई लोगों को देने की जिम्मेदारी मेरी थी। 

निमंत्रण पत्र देखकर नाथपंथ के विशेषज्ञ डॉक्टर नागेंद्रनाथ उपाध्याय थोड़ी उलझन में पड़ गए। दबी जबान से उन्होंने मुझसे कहा कि मिश्र जी के निमंत्रण पत्र में भाषा की भूल मेरी समझ में नहीं आ रही है। निमंत्रण पत्र में गिरिश लिखा हुआ था।

मुझे भी बात समझ में नहीं आई।

यह बात मैंने गुरुजी को बताई। अपने स्वभाव के अनुकूल वे बड़े जोर से हँसे। फिर बोले - खा गए न गच्चा हिंदी वाले! अरे भाई, गिरिश भी होता है।

फिर उन्होंने मुझे ऊपर वाली व्याख्या बताई।

 

 2. सच्चाई / सचाई

आलिमजी का एक पोस्ट है, जिसकी चर्चा के केंद्र में मुख्य दो विषय हैं -

1. सच्चाई सही है या सचाई?

2. सच शब्द संज्ञा है या विशेषण? या दोनों?

आलिमजी के अनुसार -

सच्चा+आई=सच्चाई 

सच+आई=सचाई 

लेकिन ऐसा नहीं है। सच्चाविशेषण है। उसके साथ ‘-आई’ (भाववाचक बनाने वाला) प्रत्यय जुड़ने से भाववाचक संज्ञा सच्चाईबनती है। 

कुछ लोग उच्चारण की सुगमता के कारण सच्चाईकी जगह सचाईबोलते हैं तथा सचाई लिखते भी हैं।

सच्चाई तथा सचाई का यही संबंध है।

रचना प्रक्रिया की दृष्टि से सच्चाईही सही है। लेकिन बोलने तथा लिखने में सचाई रूप भी चलता है।

सचाई सचके साथ ‘-आईप्रत्यय जुड़ने से नहीं बना है। कारण कि भाववाचक प्रत्यय ‘-आईविशेषण तथा क्रिया (धातु) के साथ जुड़ता है। संज्ञा के साथ नहीं जुड़ता। 

सचसंज्ञा है। 

लेकिन आलिमजी सचको सिर्फ संज्ञा मानने के पक्ष में नहीं हैं। कारण कि वे सचको अंग्रेजी के true तथा truth के साथ जोड़कर देखते हैं। true विशेषण है तथा truth संज्ञा है। इस कारण वे सच को संज्ञा तथा विशेषण दोनों मानते हैं। 

लेकिन ऐसा नहीं हो सकता। कोई भी शब्द किसी एक ही वर्ग में रखा जा सकता है। एक ही शब्द संज्ञा तथा विशेषण दोनों  नहीं हो सकता। 

हाँ, प्रयोग एक से अधिक वर्गों में हो सकता है। अमीर, गरीब, गोरा, काला जैसे शब्द मूलतः विशेषण हैं। लेकिन इनका प्रयोग संज्ञा के रूप भी होता है -

1. अमीर आदमी/गरीब आदमी (विशेषण)

2. अमीर किसी के सगे नहीं होते। (संज्ञा)

मेरी बात ध्यान से सुनो।’ 

ध्यान शब्द संज्ञा है। लेकिन इस वाक्य में इसका प्रयोग क्रियाविशेषणके रूप में हुआ है।

अब सचके कुछ प्रयोग देखते हैं -

सच बोलो/सच का बोलबाला/सच ही सदा जीतता है/सच को स्वीकार करो/सच कभी नहीं हारता/हिम्मत हो तो सच का मुकाबला करो/सच तो सच ही होता है।

आलिमजी के अनुसार कोशग्रंथ भी सच को विशेषण मानते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। बृहत् हिन्दी शब्दकोश के अनुसार.सच संज्ञा है। सच विशेषण है ही नहीं।

आलिमजी के इस पोस्ट पर श्री अभिनंदन जी ने कई मौलिकटिप्पणियाँ की हैं। कुछ नमूने देखिए -

1. सच संज्ञा न होकर विशेषण ही है/ 2. सच क्रिया की विशेषता रीति के रूप में बता रहा है। अतः रीतिबोधक क्रियाविशेषण है/ 3. झूठ भाववाचक संज्ञा है। सच को भी भाववाचक संज्ञा के रूप में माना गया है/ 4. सच को संज्ञा रूप कहने से नकारा नहीं जा सकता।

इस पर क्या किसी टिप्पणी की जरूरत है?

 

 3. वचन

वचन एक व्याकरणिक शब्द है।

वचन का अर्थ है संख्या।

किसी शब्द के जिस रूप से किसी पदार्थ की (जिसके लिए वह प्रयुक्त होता है) संख्या का बोध होता है, उसे वचन कहते हैं।

हिंदी में दो वचन हैं - १. एकवचन तथा २. बहुवचन।

यहाँ तक तो सब ठीक है। परंतु एक परेशानी पैदा करते हैं कुछ व्याकरण लेखक तथा प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र बनाने वाले महानुभाव।

वे लोग कुछ शब्दों को नित्य बहुवचन कहते हैं।

उपकार प्रकाशन द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक में प्राण, दर्शन, आँसू, हाथ, हस्ताक्षर, बाल जैसे शब्दों को नित्य बहुवचन कहा गया है।

यह जरा विचारणीय है।

ऐसे लोग एक बात भूल जाते हैं कि ‘शब्द के रूप’ तथा ‘शब्द के प्रयोग’ में अंतर है।

वचन का संबंध शब्द के रूप से है। किसी शब्द का वचन उसके रूप से तय होता है। 

जैसे - उसके प्राण निकल गए।

इस वाक्य में प्राण शब्द का ‘प्रयोग’ बहुवचन में भले ही हुआ है। 

लेकिन ‘रूप’ की दृष्टि से प्राण शब्द एकवचन में ही है।

यह ध्यान रखना चाहिए कि सभी संज्ञा शब्द अपने मूल रूप में एकवचन में ही होते हैं। उनके बहुवचन रूप प्रत्यय जोड़कर बनाए जाते हैं।

अगर हस्ताक्षर, प्राण, हाथ, बाल, आँसू आदि बहुवचन हैं, तो हस्ताक्षरों, प्राणों, हाथों, बालों, आँसुओं क्या हैं?

 

 4. अकर्मक क्रियाएँ

अँखुवाना, अँगड़ाना, अकड़ना, अकबकाना, अकुलाना, अगराना, अघाना, अचकचाना, अटकना, अटपटाना, अड़ना, अलसाना, इतराना, उकताना, उखड़ना, उगना, उघड़ना, उचकना, उचटना, उछलना, उजड़ना, उझकना, उठँगना, उठना, उड़ना, उतरना, उतराना, उपटना, उफनना, उबरना, उभड़ना/उभरना, उमड़ना, ऊँघना, औंधना, कँपना, कलपना, कुढ़ना, कुम्हलाना, कुलबुलाना, कुलाँचना, कूकना, कूजना, कूदना, खँखारना, खिसकना, खुलना, गड़ना, गरजना, गरना, गलना, गाजना, गिरना, गुँथना, गुजरना, गुनना, गुर्राना, घटना, घबराना, घहरना, घिरना, घुघुवाया, घुटना, घुनना, घुमड़ना, घुरघुराना, घुलना, घूमना, चकपकाना, चकराना, चटकना, चढ़ना, चिड़चिड़ाना, चिढ़ना, चिपकना, चिरना, चिलकना, चिल्लाना, चीखना, चुकना, चुनचुनाना, चुभना, चुरना, चुलबुलाना, चूकना, चेतना, चौंकना, छँटना, छकना, छटकना, छटपटाना, छपना, छलना, छाना, छिड़ना, छिदना, छिनना, छिपना, छिलना, छींकना, छीजना, छूटना, जँचना, जकड़ना, जगमगाना, जटाना, जनना, जमना, जाना, जीना, जुटना, जुड़ना, झँपकना, झझकना, झड़ना, झनझनाना, झपकना, झरना, झलकना, झिलमिलाना (झलमलाना), झल्लाना, झहरना, झिझकना, झुँझलाना, झुकना, झुलसना, झूमना, झूलना, झेंपना, टँगना, टकराना, टनटनाना, टपकना, टर्राना, टलना, टहकना, टहलना, टिकना, टीसना, टुनटुनाना, टेकना, टेरना, टोकना, ठगना, ठनकना, ठनठनाना, ठनना, ठमकना, ठहरना, ठिठकना, ठुकना, ठुनकना, ठुनठुनाना, डकारना, डगना, डगमगाना, डगरना, डबडबाना, डरना, डहकाना, डूबना, डोलना, ढरकना, ढलना, ढहना, ढुकना, ढुलकना, तकना, तड़कना, तड़तड़ाना, तड़पना, तपना, तरना, तरसना, तुनकना, तैरना, थकना, थमना, थरथराना, थहराना, थिरकना, थिरना, थूकना, दगना, दनदाना, दफनाना, दबना, दमकना, दरकना, दलकना, दहकना, दहलना, दहाड़ना, दिखना, दीपना, दुखना, दुलराना, दौड़ना, धँसना, धड़कना, धधकना, धसकना, धुँधलाना, धुँधुँवाना, धुमिलाना, धुलना, धौंकना, नँगियाना, नजराना, नथना, नरमाना, नहाना, नाचना, निकलना, निपटना, निबहना, निभना, पकना, पचना, पटकाना, पटना, पड़ना, पथराना, पनपना, परपराना, पादना, पिघलना, पिचकना, पिछड़ना, पिटना, पिसना, पिहकना, पुतना, पैठना, फँसना, फटना, फड़कना फबना, फरकना, फरफराना, फलना, फिरना, फिसलना, फुदकना, फुसफुसाना, फूटना, फैलना, बँटना, बकना, बचना, बजना,  बटुरना, बड़बड़ाना, बनना, बरसना, बर्राना, बसना, बहकना, बहना बहलना, बिखरना, बिखियाना, बिगड़ना, बिचकना, बिछना, बिदकना, बिफरना, बिरझना, बिलखना, बिलबिलाना, बिसरना, बुझना, बूड़ना, बैठना, बोलना, बौराना, भागना, भीगना (भींजना), भटकना, भुगतना, भुनभुनाना, भुरभुराना, भौंकना (भूँकना), भूलना, मँजना, मटकना, मरना, महकना, महमहाना, मातना, मानना, मिचलाना, मिटना, मिमियाना, मिलना, मुँड़ना, मुकरना, रंभाना, रपटना, रमना, रहना, राँचना, रिझना, रिरियाना, रिसना, रीतना, रँधना, रुकना, रुझना, रूठना, रेंकना, रेंगना, रोना, लँगड़ाना, लगना, लचकना, लजाना, लटकना, शरमाना, सँभलना, सँवरना, सकना, सकुचाना, सुगबुगाना (सगबगाना), सजना, सटना, सठियाना, सड़ना, सधुवाना, सनकना, सनना, सनसनाना, समझना, समाना, सरकना, सरसराना, सहना, सिकुड़ना, सिटपिटाना, सिधारना, सिमटना, सिलना, सिसकना, सिसकारना, सिहरना, सिहाना, सीझना, सुरसुराना (सुड़सुड़ाना), सुधरना, सुलगना, सुलझना, सुस्ताना, सोना, हँसना, हकबकाना, हकलाना, हटना, हड़बड़ानाहदसना, हरकना, हलकना, हलहलाना, हारना, हिचकना, हिचकिचाना, हिनहिनाना, हिलना, हँकारना, होना।

डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

भाषाचिन्तक

40, साईं पार्क सोसाइटी

बाकरोल – 388315

जिला आणंद (गुजरात)


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